ठठोली
ठाँव [ ठिकाना / स्थान ]
ठीकरा [ मिट्टी का वर्तन / भिक्षा पात्र और निरथर्क /व्यर्थ समझना ]
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
'ठीकरा' समझने की भूल न करना कोई हंसी 'ठठोली' में भी
बना लिया 'ठाँव' मैंने 'प्रतिबिम्ब', इस अजनबी शहर में भी
नैनी ग्रोवर
'ठीकरा' सा है ये जीवन, 'ठाँव' कहाँ ढूँढे है,
'ठठोली' करती है किस्मत, नितदिन हमसे..!! नैनी
DrShyam Sundar Matia
KANHA, RADHA SE THTHOLI KA THIKRA ,
MAHARE THANV NA FODO //
कुसुम शर्मा
ये तन है 'ठीकरा'
मत कर क़िस्मत तु 'ठठोली'
'ठाँव' है कहाँ ये मालूम नही !!
Kiran Srivastava
मत कर 'ठठोली' ऐ जिंदगी
नहीं है तेरा कोई 'ठाँव'-ठिकाना....!!
जैसे आया है,वैसे जायेगा,
'ठीकरा' सा टूट कर बिखर जायेगा....!!!!
प्रभा मित्तल
"ठीकरा"लिए हाथ में एक स्त्री
कब से गंगा किनारे बैठी है
बरस बीत गए कितने ही,
जाड़ा गर्मी बरसात या
हो बेमौसम की मार
सिर पर सब सहती है
न "ठाँव" है न छाँव है
बच्चे-बड़े छेड़कर हँसते हैं
पर किसी से कुछ नहीं कहती
बेज़ुबान सी चुप रहती है
जो भिक्षा में मिल जाए
खाकर भूख मिटा लेती है।
एक दिन मैंने पूछ ही लिया
माँ जी घर क्यों नहीं जाती हो ?
कातर सी मुश्किल से वो बोली-
बीमार हूँ संक्रमण के डर से
बेटे ने घर से निकाल दिया है
बदनामी के डर से बाहर
कुछ भी कहने से मना किया है
कसूर उसका नहीं है, बेटी !
मेरे ही भाग्य की है ये "ठठोली"।
मैं निःशब्द निस्तब्ध सी खड़ी
उसके इस कथन पर हैरान थी
जो माँ बीमारी में बच्चे को
अपनी छाती पर सुलाती है
बुढ़ापे में बीमार वही माँ
अछूत कैसे बन जाती है....।
अलका गुप्ता
फोड़ 'ठीकरा' इस 'ठाँव' 'ठठोली' का |
बैठीं मिल चारि सखी हम-जोली का |
रैन गई..बैन गई.. मरि चैन गई...
चारि घरा फोड़ि आईं बढ़ि-बोली का ||
अलका गुप्ता
फोड़ 'ठीकरा' इस 'ठाँव' 'ठठोली' का |
बैठीं मिल चारि सखी हम-जोली का |
रैन गई..बैन गई.. मरि चैन गई...
चारि घरा फोड़ि आईं बढ़ि-बोली का ||
यहाँ प्रस्तुत सभी शब्द और भाव पूर्व में प्रकाशित है समूह " 3 पत्ती - तीन शब्दों का अनूठा खेल" में https://www.facebook.com/groups/tiinpatti/
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