संबंध - प्रेम - श्रेय
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
'गति' तो 'दिन' हुए और दिन अब 'डे' हो गए
मधुर संबंध छूटने लगे, रिश्ते अब 'गे' हो गए
प्रेम हमने सिखाया 'प्रतिबिम्ब' फिरंगी 'श्रेय' ले गए
चाय शरबत छूटी, स्कोच विह्स्की अब 'पेय' हो गए
किरण आर्य
संबंध जो मन को थे बांधे, आज टूटे क्यों सम कच्चे धागे से
प्रेम का पाठ हर धर्म पढ़ाता, फिर क्यों जोड़ा नफरत से नाता
श्रेय ले गई आधुनिकता, क्यों संस्कृति का साथ अब ना भाता
Sandeep Lakhera Nainvaya
मैं अपने प्रेम संबंध का सारा श्रेय अपनी माँ को देना चाहूँगा जिसने मुझे इन बहुमूल्य शब्दों का अर्थ समझाया .
Pushpa Tripathi
रिश्तें सबंध से जब दिल टूटा तो 'आप' से 'रे ' हो गए
प्रेम की माला में पिरोया फूल ताजा थे अब 'मुरझाए गए
मजा तो जीने में है 'पुष्प ' जलने, मरने, झगड़ने में नहीं
हम सर्व समर्पित जीवन में आश्रय थे अब 'श्रेय ' हो गए
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
हाय रे आधुनिकता ।
तू इतनी गहरी जड़े जमा गयी ।
संबंध बस नाम के रहे ।
प्रेम तो भौतिकता के दलदल में समां गयी ।
सभी पर ज्वर दिखावे का चढ़ा ।
श्रेय पाने को महंगाई भी पंक्ति में खड़ा ।।
Shyam Sundar Matia
जो हमारा प्रेम संबंध है उसका श्रेय मैं भगवान को देना चाहूँगा
अलका गुप्ता
आँखों ने देखा सूरत को दिल दीवाना हो गया |
उमड़े जज्वात तो प्रेम का पैमाना छलक गया |
समन्वय में उनके...संबंध हसीन एक रच गया|
और श्रेय इन सबका...वह लाल गुलाब ले गया ||
किरण आर्य
प्रेम हाँ संबंध ये अटूट धागे सा
तेरे मेरे अहसासों से निर्मित
श्रेय तेरा कुछ मेरा साझा सा
इक बंधन दिल से दिल को राह दे
रूह में बसे तेरे जज्बातों सा
नैनी ग्रोवर
संबंध प्रेम के, रस्मों-रिवाजों के मोहताज़ नहीं हैं,
श्रेय जाता है बस किस्मत को, इसमें कोई राज़ नहीं है !!
कुसुम शर्मा
जो संबंध प्रेम से बनता है उसमे स्वार्थ नहीं होता
इसमें तेरा या मेरा किसी एक का श्रेय नहीं होता
होता है तो सिर्फ अटूट विश्वाश
यह वह संबंध है जो किसी के तोड़ने से भी नहीं टूटता ।।
यहाँ प्रस्तुत सभी शब्द और भाव पूर्व में प्रकाशित है समूह " 3 पत्ती - तीन शब्दों का अनूठा खेल" में
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