Saturday, December 6, 2014

प्रतियोगिता शुरुआत


{ रात-अमीर-उजियारा.के विलोम शब्दों का प्रयोग करते हुए भाव }


दीपक अरोड़ा 
रात-अमीर-उजियारा.... दिन-गरीब-अंधेरा

हर रात अंधेरे में गुजारता वह गरीब
दिन में दो रोटी के लिए फिरे मारा-मारा
अमीर तो ऐश करे गरीब का खून चूस कर
गरीब के जीवन में कहां से आए उजियारा



उषा रतूड़ी शर्मा ''
एक गरीब सुबह केे उजाले में यूँ भटका
मानो रात का घना अँधियारा सिमटा हो.. उषा


नैनी ग्रोवर 
इक गरीब के लिए, दिन है क्या, और रात क्या,
बच्चों की खातिर झूझना है, अन्धेरा क्या, बरसात क्या ..!!


कुसुम शर्मा 
आज दिन के उजाले में भी अँधेरा है
चारो और फैला भ्रस्ताचार का मेला है
हर मौसम पतझड़ हर इंसान कमीना है
पीने के लिया पानी नहीं पसीना है
यहाँ दो वक़्त की रोटी नहीं
गरीब रोज खाता गम का निवाला है
नेता मूर्तियों को सवारने में लाखो लगा देते है
वही गरीब एक वक़्त की रोटी के लिए जान गवा देते है

DrShyam Sundar Matia 
दिन के उजियारे की थकान के पश्चात , रात का
हल्का हल्का अँधेरा , गरीब के लिए चैन की नींद प्रदान करता है /

अलका गुप्ता  { विजेता  - बधाई  }
रात-अमीर-उजियारा. (१) दिन..(2) गरीब (३) अँधेरा

रात-दिन...मशक्कत से..जिया |
अंधेरों से लड़ा गर्दिशों को पिया |
हम रहें ..उजालों में ..गरीब था..
वह जला.. बन...बाती का दिया ||


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ....
'दिन' के उजाले में 'गरीब' पसीना बहाता है
'अँधेरा' उसको रोज भूख बन कर डसता है


प्रभा मित्तल 
रोजी की तलाश में निकला , लौटकर न आया
'दिन' भर भटकता रहा 'ग़रीब' दो जून रोटी पाने को
उधर दिया भी राह देखता जूझता रहा रात भर
तूफान से,उसके घर का 'अंधियारा' मिटाने को।



यहाँ प्रस्तुत सभी शब्द और भाव पूर्व में प्रकाशित है समूह " 3 पत्ती - तीन शब्दों का अनूठा खेल" में https://www.facebook.com/groups/tiinpatti/