Thursday, May 7, 2015

क्षपित, त्रुटि, विकीर्ण



मित्रो पिछली पोस्ट पर पहले ३ निम्नलिखित शब्द मिले, अब इन पर आप अपने भाव लिखिए 
क्षपित
त्रुटि 
विकीर्ण


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प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
'त्रुटि' न जाने हमसे कहाँ हुई, भाव जो यूं 'क्षपित' हुए
'विकीर्ण' सा अंतर्मन 'प्रतिबिंब', मन में एक भय लिए

नैनी ग्रोवर 
क्षपित हुई जब जब नारी, विकीर्ण तब तब पाप हुआ, 
ऐसी भी क्या त्रुटि हुई प्रभु, 
क्यों ना मानव को संताप हुआ ...!!

अलका गुप्ता 
कुछ तो त्रुटि-मय आव्हान हुए | 
प्रलोभन मय.....संवाहन हुए | 
क्षपित हुए रूप प्रतिरूप सभी...
विकीर्ण आश किरण से भान हुए || 

विभिन्न संदर्भो में बोए गए |
बीज निरंतर निद्रा मय सोए | 
भानु पवन जल स्पर्शों ने... 
अंकुरण अकुलाहट उपजाए ||

अंतर्मन पोषित आग़ाज हुए |
शीश उठा..गहन मंतव्य..गहे |
ललकार लहे भीषण संवाद बहे 
तरु ताड़ ..शज़र विकराल भए ||


प्रभा मित्तल 
भोला था बचपन भूल गया मन
उसके मानसरोवर में कितनी इच्छाएँ
पलती थीं कितनी हुईं पूरी कुछ अधूरी
'क्षपित' शापित सी तड़पती थीं।
ना जाने किस 'त्रुटि' की सजा मिली
जीवन के इस 'विकीर्ण' मरुस्थल में
गति हीन हो रुकूँ नहीं ,बढ़ती जाऊँ
इसी चाह में राह के कंटक चुनती थी। 

यहाँ प्रस्तुत सभी शब्द और भाव पूर्व में प्रकाशित है समूह " 3 पत्ती - तीन शब्दों का अनूठा खेल" में https://www.facebook.com/groups/tiinpatti/